मैं हमेसा सोचता हु की आखिर में दोषी कौन है? -देश की जनता या हमारे राजनेता! जो की आपने आपमें एक बहुत बड़ा सवाल है! आज लोकतंत्र एक मजाक बन गया है|अगर हमारे राजनेता गलत है तो हमउनको चुनते ही क्यों है,यदि हम गलत लोग को वोट देते है तो हमारे पास उनको गलत कहने का कोई आधिकार नहीं है|
हद हो गई है। अब तो न समाचार देखने को मन करता है, न पढ़ने का। इस बार के चुनाव में राजनेता नसिर्फ अपनी मर्यादा पार कर चुके हैं, बल्कि उसकी परिभाषा भी बदल चुके हैं। कोई किसी को कुचल रहा है, कोई किसी को काट रहा है। कोई किसी को मारने की धमकी दे रहा है। और कोई किसी के अस्तित्वको मिटाने की बात कर रहा है।
लेकिन, इसके बीच भी आपको मन को समझाना है कि प्रजातंत्र को बचाए रखने के लिए वोटिंग मेंहिस्सा लेना जरुरी है और इन्हीं में से किसी एक को चुनना है। इस लोकतंत्र का एक वोटर, जो पूरी तरह सेअपना विश्वास खो चुका है- न सिर्फ इस तंत्र में बल्कि अपने आप में, उसे इस तरह की भाषा, इस तरह केभाषण और इस तरह के नेता कहीं से भी मदद नहीं कर रहे।
आज कोई भी पार्टी ये दावा नहीं कर सकती कि उसने अपने चुनाव प्रचार में जनता को निराश नहीं कियाहै। सभी ने किया। उनके हर नेता ने निराश किया। पता नहीं क्या क्या झेलना होगा और क्या क्या सुननाहोगा। एक मजाक सा बन गया है ये चुनाव। और इस तरह के सारे चुनाव। किसी के पास कोई ठोसआदर्श नहीं हैं, न मेनिफेस्टो है, न विचारधारा है और न राजनीति है। मुझे हंसी आती है जब सबके सबताल ठोंकर न सिर्फ चुने जाने का दावा करते हैं, बल्कि भविष्य के प्रधानमंत्री भी खुद को ही बताते हैं।सच कहूं कि हंसी के साथ डर भी लगता है कि कहीं इस तरह के तंत्र में यही व्यक्ति सबसे ऊंचे पद पर नबैठ जाए।
लेकिन,फिर भी दिल को कहता हूं हिम्मत न हारो। उम्मीद न छोड़ो। अराजकता से ही शायद एक सही रास्ता निकलेगा। अराजक तत्वों के बीच से ही शायद अचानक सही राजधर्म निभाने वाला आएगा।
With this
Yours Friend
Sudarshan Singh
हद हो गई है। अब तो न समाचार देखने को मन करता है, न पढ़ने का। इस बार के चुनाव में राजनेता नसिर्फ अपनी मर्यादा पार कर चुके हैं, बल्कि उसकी परिभाषा भी बदल चुके हैं। कोई किसी को कुचल रहा है, कोई किसी को काट रहा है। कोई किसी को मारने की धमकी दे रहा है। और कोई किसी के अस्तित्वको मिटाने की बात कर रहा है।
लेकिन, इसके बीच भी आपको मन को समझाना है कि प्रजातंत्र को बचाए रखने के लिए वोटिंग मेंहिस्सा लेना जरुरी है और इन्हीं में से किसी एक को चुनना है। इस लोकतंत्र का एक वोटर, जो पूरी तरह सेअपना विश्वास खो चुका है- न सिर्फ इस तंत्र में बल्कि अपने आप में, उसे इस तरह की भाषा, इस तरह केभाषण और इस तरह के नेता कहीं से भी मदद नहीं कर रहे।
आज कोई भी पार्टी ये दावा नहीं कर सकती कि उसने अपने चुनाव प्रचार में जनता को निराश नहीं कियाहै। सभी ने किया। उनके हर नेता ने निराश किया। पता नहीं क्या क्या झेलना होगा और क्या क्या सुननाहोगा। एक मजाक सा बन गया है ये चुनाव। और इस तरह के सारे चुनाव। किसी के पास कोई ठोसआदर्श नहीं हैं, न मेनिफेस्टो है, न विचारधारा है और न राजनीति है। मुझे हंसी आती है जब सबके सबताल ठोंकर न सिर्फ चुने जाने का दावा करते हैं, बल्कि भविष्य के प्रधानमंत्री भी खुद को ही बताते हैं।सच कहूं कि हंसी के साथ डर भी लगता है कि कहीं इस तरह के तंत्र में यही व्यक्ति सबसे ऊंचे पद पर नबैठ जाए।
लेकिन,फिर भी दिल को कहता हूं हिम्मत न हारो। उम्मीद न छोड़ो। अराजकता से ही शायद एक सही रास्ता निकलेगा। अराजक तत्वों के बीच से ही शायद अचानक सही राजधर्म निभाने वाला आएगा।
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Sudarshan Singh